5 दिसंबर को छत्तीसगढ़ के रतनपुर में होने वाले संत समागम में बिहार की टीम का कमान संभालेंगे पीठाधीश्वर श्यामा नंद जी
अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष का मनाया जाएगा जन्म दिवस
विशेष रिपोर्ट
राजन मिश्रा , 3 दिसंबर 2025
पटना,
छत्तीसगढ़ राज्य के रतनपुर/बिलासपुर स्थित सिद्धिदात्री माता महामाया की पवित्र भूमि पर अंतर्राष्ट्रीय संत बौद्धिक मंच का एक दिवसीय समागम का आयोजन सुनिश्चित है। जिसमें भारतबर्ष के साथ ही नेपाल, श्रीलंका, भूटान, इंडोनेशिया,साउथ अमेरिका,नार्थ अमेरिका, दुबई में सक्रिय संगठन के पदाधिकारियों को भी निमंत्रण भेजा गया है।
मंच के राष्ट्रीय महामंत्री और पीठाधीश्वर स्वामी श्यामा नंद जी महाराज इस समागम में जाने वाले संतो और बौद्धिक जनों का नेतृत्व करेंगे। श्री श्यामा नंद जी महाराज (पटना)के अलावा बिहार से राष्ट्रीय सचिव मृत्युंजय नाथ गोपाल, रूपा रानी साह ,एवं सौरभ शाह समागम में भाग लेंगे।
संगठन के राष्ट्रीय महामंत्री एवं पीठाधीश्वर श्यामानंद जी महाराज जी ने बताया कि समागम का आयोजन की मेजबानी छत्तीसगढ़ ईकाई ने संगठन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी स्वदेशानंद ब्रह्मगिरी जी महाराज के अवतरण दिवस के अवसर पर किया है। जिसमें भारत के अनेक प्रांतों में हिंदु धार्मिक स्थलों के संरक्षण हेतु अनेक राज्यों में राज्य सरकार द्वारा गठित धार्मिक न्यास बोर्डो के स्वरूप एवं कार्यकलाप पर भी मंथन होगा।
इस अवसर पर बिहार की ओर से भारतीय संस्कृति संरक्षण एवं बिकास परिषद के संस्थापक सह अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक मंच के राष्ट्रीय सचिव मृत्युंजय नाथ गोपाल जी, एवं महामंत्री श्यामानंद महराज द्वारा
केंद्रीय कोर कमिटी द्वारा संस्कृति एवं धार्मिक स्थलों के संरक्षण से संबंधित एक मांग पत्र संगठन के आइकान सह भारतबर्ष के यशस्वी प्रधानमंत्री धर्मपुत्र श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी को संबोधित एक निवेदन पत्र समुचित माध्यम से भेजा जाएगा।
श्री गोपाल जी ने कहा कि तत्पश्चात मंच द्वारा सनातन धर्म ही राष्ट्र धर्म है। क्योंकि सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मांh कश्चित दुख्भाग् भवेत्।
यानि सब सुखी हों।सब निरोगी हो।
यह धर्म किसी खास की बात नहीं करता।इस सब में केवल मानव जाति ही नहीं! बल्कि पशु पक्षी,वृक्ष बनस्पति समेत संपुर्ण सृष्टि के संपन्नता की बात करती है।इसलिए इस धर्म का प्रसार एवं संरक्षण हैं।और जबतक हमारे धार्मिक स्थल समुन्नत न हों।तो सभ्य समाज की कल्पना बकवास होगी। क्योंकि धार्मिक स्थल ही संस्कृति के केंद्र होते हैं।


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