जेएनसीएएसआर शोधकर्ताओं ने फेफडों के कैंसर के लिए नैदानिकी थेरेपी विकसित की



राजन मिश्रा 

6 सितंबर 2020


फेफडों का कैंसर दुनिया भर में कैंसर संबंधित मौतों का सबसे आम कारण है जिसका आरंभिक अवस्था में पता लगाना कठिन होता है, इसलिए इसका उपचार करना भी मुश्किल होता है। वैज्ञानिकों को शीघ्र ही फेफडों के कैंसर के लिए नैदानिकी थेरेपी के रूप में एक समाधान प्राप्त हो सकता है जो व्यक्तिगत रूप से दवा के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

अभी हाल में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्तशासी संस्थान जवाहर लाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) के शोधकर्ताओं ने फेफडों के कैंसर के लिए एक थेरानोस्टिक्स (नैदानिकी थेरेपी) ड्रग कैंडीडेट का विकास किया है। डीएसटी, ब्रिक्स मल्टीलैटेरल आरएंडडी प्रोजेक्ट्स ग्रांट एवं स्वर्ण जयंती फेलोशिप ग्रांट द्वारा वित्तपोषित शोध कार्य थेरानोस्टिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ था।

ऑन्कोजीन विशिष्ट नान-कैनोनिकल डीएनए माध्यमिक संरचनाओं (जी-क्वाडरप्लेक्स- जीक्यू संरचनाएं) की चयनात्मक मान्यताओं और इमेजिंग की कैंसर के लिए नैदानिकी थेरेपी (थेरानोस्टिक्स) के विकास में बहुत संभावनाएं हैं और अपनी संरचनागत डायनैमिक्स तथा विविधता के कारण बहुत चुनौतीपूर्ण रही है।

प्रो. टी. गोविंदराजू ने जेएनसीएएसआर की अपनी टीम के साथ अनूठी बीसीएल-2 जीक्यू के चुनिंदा मान्यता के लिए एक छोटा सा अणु विकसित किया जिसमें यूनिक हाइब्रिड लूप स्टैकिंग और ग्रूव बाइंडिंग मोड के माध्यम से सुदूर लाल प्रतिदीप्ति प्रतिक्रिया और एंटीकैंसर गतिविधि को जीक्यू गर्भित फेफड़ों के कैंसर के थेरानोस्टिक्स के रूप में प्रदर्शित किया गया।

जेएनसीएएसआर टीम ने इसके द्वारा टीजीपी18 मोलेक्यूल की थेरानोस्टिक्स गतिविधि रिपोर्ट की। हाइब्रिड मोड के जरिये विशिष्ट टोपोलोजी मान्यता की उनकी कार्यनीति ने प्रयोगशालाओं में फेफडों की कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए आक्सीडेटिव स्ट्रेस और जीनोम अस्थिरता का लाभ उठाया। इसके अतिरिक्त,  एनआईआर स्पेक्ट्रोस्कोपिक विंडो के फार-रेड के निचले किनारे पर टर्न ऑन इमिशन बैंड के साथ टीजीपी18 ट्यूमर कोशिका इमेजिंग के लिए एक व्यावहार्य जांच साबित हुई।

जी-क्वाडरप्लेक्स नान-कैनोनिकल डीएनए माध्यमिक संरचनाएं होती हैं जो कई ऑन्कोजीन्स के अभिलक्षण सहित सेलुलर प्रक्रियाओं के एक विस्तृत रेंज को विनियमित करती हैं।

कैंसर कोशिकाओं में जीक्यू के स्थिरीकरण से रेप्लीकेशन स्ट्रेस तथा डीएनए डैमेज एकुमुलेशन होता है इसलिए इन्हें आशाजनक केमोथेराप्यूटिक टार्गेट के रूप में माना जाता है।

जेएनसीएएसआर टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन से पता चला कि जीक्यू की विशिष्ट लूप संरचना से उत्पन्न चयनात्मक मान्यता समग्र प्रोब इंटरऐक्शन एवं बाइंडिंग ऐफिनिटी को बदल देता है। टीजीपी18 एंटीएपोप्टोटिक बीसीएल-2जीक्यू के लिए बाध्यकारी है जो कैंसर कोशिकाओं को मारने के द्वारा प्रोसर्वाइवल फंक्शन और कैंसर रोधी गतिविधि को समाप्त करता है।

उनके निष्कर्षों के अनुसार, टीजीपी18 (0.5 मिलीग्राम / किग्रा)की उल्लेखनीय रूप से कम खुराक ने 100 मिलीग्राम/ किग्रा की बहुत अधिक खुराक पर एंटीकैंसर ड्रग जेसीबिटाबिन के समान फेफड़े के ट्यूमर की गतिविधि को दिखाया। चिकित्सीय एजेंट टीजीपी18 को ट्यूमर साइट लक्ष्य तक पहुंचता देखा गया जैसीकि ट्यूमर ऊतक के फॉर रेड इमेजिंग द्वारा इसकी निगरानी की गई।

व्यक्तिगत चिकित्सा में बेशुमार निहितार्थ के साथ कैंसरप्रकार की विशिष्ट चिकित्सीय दवाओं को विकसित करने के लिए इस पद्धति का और अधिक उपयोग किया जा सकता है। इस अन्वेषण के लिए एक पेटेंट आवेदन पहले ही दायर किया जा चुका है।

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प्रकाशन लिंक[DOI: 10.7150/thno.48675

अधिक जानकारी के लिए प्रो टी गोविंदराजू (tgraju@jncasr.ac.in;+91 8022082969) से संपर्क किया जा सकता है।]

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