प्रसंगवश
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शर्मा बहिनजी !!तुमको ना भूल पाएंगे . . . . . .
एमपी मीडिया पाइंट ब्यूरो!
आजादी के कई दशकों बाद सरकार ने महिला सशक्तिकरण के राग अलापना शुरु किए लेकिन शक्तिशाली होने के बजाए, महिलाएं एक के बाद कमजोरी के गर्त मे समाती चली गईं। कमजोर महिलाओं की इस भीड़ से अलग आज भी मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की इछावर निवासी स्व श्रीमति छोटीबाई शर्मा (शर्मा बहिनजी) का नाम अादर से लिया जाता है और घरों-घर उन्हें याद किया जाता हैं।
शर्मा बहिजी , 41 साल शासकीय एंव सामाजिक सेवा देकर अपने सादा जीवन उच्च विचारों का लोहा मनवाकर 10 सितंबर 2017 को हमेशा के लिए जहाँन से जुदा हो गई। श्रीमति शर्मा पेशे से शासकीय कन्या हाईसकूल इछावर मे शिक्षिका थी , वहाँ उन्होंने 41 साल तक जिस साहस एंव सलीके से शैक्षिक कार्य को अंजाम दिया उसके उदाहरण विरले ही देखने-सुनने को मिलते हैं श्रीमति शर्मा ने जब ड्यूटी ज्वाइन की तब समूचा सीहोर जिला पर्दाप्रथा के आगोश मे समाया हुआ था , नौकरी तो दूर , घर से महिलाओं का निकलना भी बमुश्किल से हुआ करता था। बगैर पर्दे की एक भी महिला सड़कों पर नहीं दिखाई देती थी तब विद्याविनोदनी पास श्रीमति शर्मा ने घर मे बुजुर्गों से सहमति लेकर शासकीय नौकरी करने का कठोर निर्णय लेकर सभी को अचंभित कर डाला। अपनी नौकरी के दौरान लोगों के विरोधी स्वर भी उन्होंने सुने जिसे वे बड़ी सहजता से अनसुना करती रहीं और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बल्कि नौकरी के दौरान ही उन्होंने आगे बड़ते हुए एमए तक की परीक्षा उत्तीर्ण की और सन् 1998 मे रिटायरमेंट के बाद भी उनका पड़ाई से लगाव कम नहीं हुआ और उन्होंने आयुर्वेद रत्न की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने स्कूल से जिस शिद्दत , मेहनत , लगन संस्कार के साँथ ज्ञान की गंगा इछावर के घरों तक पहुंचाई उसको याद करते हुए लोगों की आँखे बरबस ही नम् हो जाती हैं । नागरिक बताते हैं कि शर्मा बहिनजी की शैली मे किताबी , भौतिक , सांस्कृतिक एंव भौगोलिक ज्ञानों का समानरुप से मिश्रण था जो उन्हें अन्य शिक्षकों की मौजूदा भीड़ से अलग खड़ा करता है। वे ऐसी शिक्षिका थीं जिन्होंने छात्राओंं को मारना-पीटना तो दूर उनके ऊपर कभी हाथ तक नहीं उठाया वे प्यार से पड़ाई की हमेशा ही हिमायती रहीं।उनके द्वारा पड़ाई गई छात्राएं अाज भी मप्र के कई नगरों मे बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं
नागरिक बताते हैं कि बच्चों से शर्मा बहिनजी का इतना लगाव था कि वे आवश्यकता के बावजूद स्कूल से छुट्टी नहीं ले पाती थीं हमेशा उनकी खासियत मे शुमार इस गुण का जिक्र जब खुद उनसे किया जाता तो कुछ देर टालमटौली के बाद मुस्कुराते अंदाज मे वे इतना ही कहती कि मै भी छुट्टी एक दिन ऐसी लूंगी जिसे जमाना चाह कर भी नहीं भुला पाएगा। और हुआ भी वही , गत वर्ष 10 सितंबर को कैंसर से जंग लड़ते हुए इछावर की इस पहली महिला शिक्षिका ने 80 वर्ष की उम्र के दौरान राजधानी भोपाल के चिरायु अस्पताल मे इस नश्वर संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
आगे आने वाली कई पीड़ियाँ उनके तपोभूमि पर उनकी मेहनत,लगन, परोपकारी जज्बे एंव संस्कारित शिक्षा का जिक्र किए बगैर नहीं रहेंगी।
चाहे कहीं भी तुम रहो ,
तुमको ना भूल पाएंगे . . . . .
एमपी मीडिया पाइंट की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि"शर्मा बहिनजी"
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शर्मा बहिनजी !!तुमको ना भूल पाएंगे . . . . . .
एमपी मीडिया पाइंट ब्यूरो!
आजादी के कई दशकों बाद सरकार ने महिला सशक्तिकरण के राग अलापना शुरु किए लेकिन शक्तिशाली होने के बजाए, महिलाएं एक के बाद कमजोरी के गर्त मे समाती चली गईं। कमजोर महिलाओं की इस भीड़ से अलग आज भी मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की इछावर निवासी स्व श्रीमति छोटीबाई शर्मा (शर्मा बहिनजी) का नाम अादर से लिया जाता है और घरों-घर उन्हें याद किया जाता हैं।
शर्मा बहिजी , 41 साल शासकीय एंव सामाजिक सेवा देकर अपने सादा जीवन उच्च विचारों का लोहा मनवाकर 10 सितंबर 2017 को हमेशा के लिए जहाँन से जुदा हो गई। श्रीमति शर्मा पेशे से शासकीय कन्या हाईसकूल इछावर मे शिक्षिका थी , वहाँ उन्होंने 41 साल तक जिस साहस एंव सलीके से शैक्षिक कार्य को अंजाम दिया उसके उदाहरण विरले ही देखने-सुनने को मिलते हैं श्रीमति शर्मा ने जब ड्यूटी ज्वाइन की तब समूचा सीहोर जिला पर्दाप्रथा के आगोश मे समाया हुआ था , नौकरी तो दूर , घर से महिलाओं का निकलना भी बमुश्किल से हुआ करता था। बगैर पर्दे की एक भी महिला सड़कों पर नहीं दिखाई देती थी तब विद्याविनोदनी पास श्रीमति शर्मा ने घर मे बुजुर्गों से सहमति लेकर शासकीय नौकरी करने का कठोर निर्णय लेकर सभी को अचंभित कर डाला। अपनी नौकरी के दौरान लोगों के विरोधी स्वर भी उन्होंने सुने जिसे वे बड़ी सहजता से अनसुना करती रहीं और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बल्कि नौकरी के दौरान ही उन्होंने आगे बड़ते हुए एमए तक की परीक्षा उत्तीर्ण की और सन् 1998 मे रिटायरमेंट के बाद भी उनका पड़ाई से लगाव कम नहीं हुआ और उन्होंने आयुर्वेद रत्न की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने स्कूल से जिस शिद्दत , मेहनत , लगन संस्कार के साँथ ज्ञान की गंगा इछावर के घरों तक पहुंचाई उसको याद करते हुए लोगों की आँखे बरबस ही नम् हो जाती हैं । नागरिक बताते हैं कि शर्मा बहिनजी की शैली मे किताबी , भौतिक , सांस्कृतिक एंव भौगोलिक ज्ञानों का समानरुप से मिश्रण था जो उन्हें अन्य शिक्षकों की मौजूदा भीड़ से अलग खड़ा करता है। वे ऐसी शिक्षिका थीं जिन्होंने छात्राओंं को मारना-पीटना तो दूर उनके ऊपर कभी हाथ तक नहीं उठाया वे प्यार से पड़ाई की हमेशा ही हिमायती रहीं।उनके द्वारा पड़ाई गई छात्राएं अाज भी मप्र के कई नगरों मे बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं
नागरिक बताते हैं कि बच्चों से शर्मा बहिनजी का इतना लगाव था कि वे आवश्यकता के बावजूद स्कूल से छुट्टी नहीं ले पाती थीं हमेशा उनकी खासियत मे शुमार इस गुण का जिक्र जब खुद उनसे किया जाता तो कुछ देर टालमटौली के बाद मुस्कुराते अंदाज मे वे इतना ही कहती कि मै भी छुट्टी एक दिन ऐसी लूंगी जिसे जमाना चाह कर भी नहीं भुला पाएगा। और हुआ भी वही , गत वर्ष 10 सितंबर को कैंसर से जंग लड़ते हुए इछावर की इस पहली महिला शिक्षिका ने 80 वर्ष की उम्र के दौरान राजधानी भोपाल के चिरायु अस्पताल मे इस नश्वर संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
आगे आने वाली कई पीड़ियाँ उनके तपोभूमि पर उनकी मेहनत,लगन, परोपकारी जज्बे एंव संस्कारित शिक्षा का जिक्र किए बगैर नहीं रहेंगी।
चाहे कहीं भी तुम रहो ,
तुमको ना भूल पाएंगे . . . . .
एमपी मीडिया पाइंट की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि"शर्मा बहिनजी"
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