गजब का  सटीक निशाना , जिसकी लालसा आज भी मेरे मन को कचौटती है


 

रचना - अनमोल कुमार / गणेश पांडे 

 मैं बेहद खराब निशानची था। न मुझसे ढेले से निशाना लगता था और न ही लबेदा से लगता था। पेड़ पर यदि चढ़ जाता था  तो उतरना नहीं आता था इसलिए मैं हमेशा हवा से गिरे, पक कर टपके या चिड़ियों,तोते के काट कर गिराए आम को बीन कर खा कर संतोष कर लेता था।

   बांस की लग्गी से लोग डाली हिला कर पके आम गिरा लेते थे और हम ठहरे सुकुवार हमसे लग्गी भी नही उठता ही नहीं था,,,, 

तो आम तक कैसे पहुंचता।

    मेरे घर पर एक आम का पेड़ था जो था तो दशहरी आम लेकिन उसका बीजू आम था इसलिए काफी बड़ा पेड़ हो गया था।

  बीजू वो आम होते हैं जो कलम, बूंटी इत्यादि विधि से पेड़ नही बनाए जाते अपितु गुठली से उग कर वर्षो बाद पेड़ बनकर तैयार होते हैं तब कही जाकर उनमें आम का फल लगता है। बीजू आम में फल इतनी देर में लगता है कि आम का अमोला बैठाने वाले अपने जीवन में ज्यादा दिन आम खाने के लिए रहते ही नहीं है।

   मेरे घर पर जितने बीजू आम के पेड़ बचे हुए हैं वो सब बाबा जी के लगाए हुए पेड़ हैं। अब बेटा और बेटियां

 कुछ अमोला लगाया था जो अभी भी छीहूला ही है।

   मेरे घर पर जो दशहरी पेड़ था उसकी खास बात ही यही थी कि दशहरी होने के बावजूद भी वो काफी बड़ा पेड़ था। वो ऐसा पेड़ था जिस पर हर वर्ष आम लगते थे क्योंकि वो आधा पेड़ इस वर्ष तो आधा पेड़ उस वर्ष फलता था। उस आम का दल यानि गुदा गुलाबी रंग का रहता था और स्वाद तो बेमिसाल होता था।

उसमें सबसे बड़ी कमी ये थे कि वो बेहद रेशे वाला आम था उसके रेशे आम के रस को छोड़ते ही नहीं थे इसलिए उसे यदि खा लो तो एक घंटे दांत में से रेशे निकालते रहो।

    मैं आम सिर्फ़ उसी पेड़ का और तुरंत का गिरा ताजा आम ही खाता था क्योंकि तब उसमें खट्टा मीठा बेहतरीन स्वाद आता था यदि उसे रात भर रख दो सुबह खाओ तो स्वाद सुगंध दोनों बदल जाते थे।

   बाबा जी का लगाया हुआ वो पेड़ था दो वर्ष पहले सूख गया इसलिए कटवाना पड़ा। 

अब आम के सीजन में घर जाता हूं तो उस आम के पेड़ को बहुत याद करता हूं। अभी भी घर पर बहुत तरह के पेड़ लगे हुए जिनमें कई सारे बीजू आम हैं सबको खाकर देख लिया लेकिन उस आम जैसा पसंदीदा स्वाद वाला आम नहीं मिला।

  बाजार के आम मुझे जरा भी नहीं भाते हैं क्योंकि थोड़ा बहुत अंतर लिए बाकी सभी आम का स्वाद लगभग एक सा ही होता है जबकि गांव के बीजू पेड़ के आम जितने पेड़ उतने रूप, रंग, आकार, सुगंध, स्वाद के आम होते हैं और यही सब बातें उन्हे अन्य आमो से अलग करती हैं और इन्ही सब कारण से उनके अलग अलग नाम रखे जाते हैं।

   जिस प्रकार गांव में भी बीजू आम के पेड़ लगाने कम हो रहे हैं आने वाले समय में हम सब न जाने कितने स्वाद वाले बीजू आम को खो देगे।

  कोशिश कीजिए की बीजू आम के पेड़ को संरक्षित रखा जाय।काश! मुझे पेड पर चढ़कर आम तोडना आ जाता।

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