अक्षय तृतीया जयंती पर विशेष


भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को अतातायियो से मुक्त कराया


रिपोर्ट -  राजन मिश्रा/अनमोल कुमार

भगवान परशुराम के पितामह भृगु ऋषि भार्गव दाम थे। भारद्वाज गोत्र वाले के लिए कुल देव हुए। भगवान बिष्णु के छठे अवतार के रूप में परशुराम का जन्म ब़ाह्मण ऋषि जन्मदग्नि और रेणुका के आश्रम में हुआ। इनके चार बडे भाई  वासु, विश्व, बृदुधातु और व़तवाकाम थे। पूर्वज उदयशंकर थे। 

क़ूर शासक के रूप में महाराजा सहस्त्रार्जुन , उनके चार पुत्रों और सहयोगी दुष्ट शासकों द्वारा ऋषि मुनियों को प़ताडित करने लगे। इन क्षत्रिय राजाओं को एसा लगने लगा कि धर्म संसद और ब़ह्मण विद्वता में हमसे आगे है और प़जा भी इनका सम्मान ज्यादा करती है। 

परशुराम के बचपन का नाम राम था, परन्तु धरती पर बढते अत्याचार और अनाचार का अन्त करने के लिए महादेव ने राम को परशु ( कुल्हाड़ी) भेट किया, तबसे राम परशुराम के नाम से जाने जाने लगे। 

एक बार ऋषि जन्मदग्नि को अपनी पत्नी रेणुका के प़ति संदेह उपजा, परशुराम पितृभक्त थे, जब पिता ने संदेह के आधार पर परशुराम को माता का सर काटकर लाने के लिए कहा, तो परशुराम ने वैसा ही किया, परन्तु संदेह दूर होते ही योगबल से माता को जीवित भी कर दिया। 

दूसरी ओर सहस्त्रार्जुन और उनके पुत्रो कि अत्याचार बढने लगा। भगवान इन्द्र द्वारा दिया हुआ, कामधेनु कपिला को जन्मदग्नि को घायल करके ले गए। इसके साथ ही जन्मदग्नि, रेणुका और परशुराम को चाहने वाली अनामिका की भी हत्या कर डाली। क़ोध ट

के ज्वाला में धधकते परशुराम ने पहले एक एककर सभी पुत्रो का बन किया। सहस्त्रार्जुन के अस्त्र शस्त्र को लूटा। सहयोगी दुष्कर्मी राजाओं को मौत के घाट उतार दिया। लंकापति रावण को भी सहस्त्रार्जुन के कारागार से मुक्त कराया। कुल, 21 बार अतातायियो से मुक्त करया और अन्ततोगत्वा सहस्त्रार्जुन का बध कर भगवान शंकर को परशु लौटाकर गृहस्थ जीवन बिताने, गुरूकुल आश्रम चलाने और कृषि कार्य अपनाने का संकल्प लिया। 

भगवान शंकर ने कलयुग मे कल्की अवतार के रूप में मानव कल्याण का वरदान दिया। शंकर भगवान ने परशुराम को एक धनुष देते हुए योग्य व्यक्ति लंकापति रावण या  राजा जनक को देने का दायित्व दिया। परशुराम जब लंकापति रावण के पास गया तो वह किसी ऋषि को दण्ड दे रहा था, परशुराम ने ऋषि को दण्ड मुक्त कराया और बगैर धनुष दिए राजा जनक के पास गए वहाँ जनता के लिए राजा कि सनेह देखकर परशुराम अभिभूत हुए और शिव धनुष उन्हें सौप दिया।

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