स्नेह प़ेम सद्भावना पवित्रता और ज्ञान के रंग में रंगने का पर्व है होली ..अर्थात ईश्वरिय संग के रंगों में रंगे रहना ही सच्ची होली मनाना है - ब्रह्माकुमारी बबीता दीदी



रिपोर्ट - अनमोल कुमार/ राजन मिश्रा 

सुपौल। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरिय विश्वविद्यालय सिमराही बाजार के स्थानीय ओम शांति केंद्र पर होली के उपलक्षय में भव्य स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया गया।

होली पर्व के आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए ब्रह्माकुमारी बबीता दीदी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की परंपरा में त्योहारों का बहुत महत्व है ।हर एक त्योहार के पीछे आत्मा और परमात्मा का अतीत में हुए उत्थान तथा पतन की जीवित कहानी है। जिस प्रकार शरीर से आत्मा निकल जाए ने के बाद मुर्दा का कोई महत्व नहीं होता। उसी प्रकार आध्यात्मिक रहस्य के जाने बिना पर्व की सार्थकता नहीं है ।जितना पर्व भारत में मनाए जाते हैं ,शायद ही उतना विश्व में किसी देश से मनाए जाते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस होली पर्व पर होलिका जलाने का तथा एक दूसरे के साथ रंग में रंगने की प्रथा है ।होली का जलना तथा स्थूल रंग में रंग कर स्वयं को रंग बिरंगी कर लेना और फिर पुराने कपड़े तथा नए कपड़े पहन नि स्वार्थ भाव से बिना भेदभाव के एक दूसरे से गले मिलना अवश्यक अलौकिक महत्व को दर्शाती है।

उन्होंने कहा कि भारतीय वर्ष में फाल्गुन की पूर्णिमा को समाप्त होते ही इसलिए फलगुनो की पूर्णिमा मासी को रात्रि होली का जलाने का अर्थ  के पीछे वर्ष की कटु और तीखी स्मृतियों को जलाना ।अपने दुखों को भूलना और हंसते खेलते नए वर्ष का आह्वान करना है ।पुराने वर्ष के अंत में इस त्यौहार का मनाया  जाना। इस रहस्य का ही परिचय देता है कि यह त्यौहार कलयुग के अंत में मनाया गया था ।इसके बाद सतयुग की सुख शांति के  दिन शुरू हुए थे। कलयुग के अंत में होली का जलाने के  पीछे मनुष्य का दुख ,दर्द  वासना तथा व्यथा सब दूर हो गए ।प्रश्न उठता है की होली का जलाने से मनुष्य के विकार और विकर्म तथा दु:ख और क्लेश भला कैसे नाश हो सकते हैं ।इससे स्पष्ट है की लकड़ीयों और गोबर जालना होली का दहन नहीं है। लकड़ीयों और गोबर को तो आज भी भारत के देहातों में प्रतिदिन जलाया जाता है ।परंतु यह दु:ख, दरिद्रता तथा अपवित्रता का प्रजलन तो हुआ नहीं है। बल्कि दिनों दिन इसमें वृद्धि हो रही है ।अतः विचार करने पर सभी वह मांगने की योग अग्नि प्रज्वलित करने से ही हमारी पुरानी कटु स्मृतियां मिट जाती है ।हमारे दुख दूर हो जाते हैं ।और उल्लास आ सकता है। इसलिए होलिका के दिन गोबर और घास को अग्नि की ज्वाला को जलाना वास्तव में होली मनाना मानते हैं।

उक्त कार्यक्रम का संचालन  ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी ने किया। मौके पर दौलतपुर हाई स्कूल के प्राध्यापक सुनील कुमार नायक जी ,नेत्र रोग विशेषज्ञ व सदर अस्पताल , सुपौल के चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर शशी भूषण चौधरी,वरिष्ठ व्यावसायिक राजू चंद , वरिष्ठ पत्रकार अरुण जायसवाल , व्यावसायिक मंजू पांसाली जानकी देवी, किरण देवी, नीलम देवी ,इंद्रदेव चौधरी, सावित्री देवी, सतनारायण भाई, रामफल भाई, ब्रह्मदेव भाई, हरि नारायण भाई, ब्रह्माकुमारी बिना बहन, शिव देवी,ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी इत्यादि सैकड़ो श्रद्धालु उपस्थित थे।

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