कोविड​​-19 पर अपडेट
कोविड​​-19 के लिए नैदानिक ​​प्रबंधन कार्यनीति के लिए देखभाल का मानक


मंटू पाठक / कपिल तिवारी 
11 जुलाई 2020

कोविड​​-19 के उपचार की पद्धति काफी हद तक स्पर्शोन्मुख और सहायक देखभाल पर आधारित है, क्योंकि अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है। शरीर में जल की आवश्यक मात्रा को बनाए रखना भी जरूरी है। लक्षणों की गंभीरता के आधार पर कोविड-19 को हल्का, मध्यम और गंभीर जैसे 3 समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। 10.07.2020 को राज्यों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस और 10.07.202 को ‘राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के उत्कृष्टता केंद्रों द्वारा कोविड मामले का उपचार’ विषय पर एक वर्चुअल बैठक में आईसीएमआर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली ने इस बात पर जोर दिया कि इलाज के अभाव में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) के नैदानिक ​​प्रबंधन प्रोटोकॉल में वर्णित हल्के, मध्यम और गंभीर मामलों के लिए देखभाल उपचार का मानक सबसे प्रभावी होगा।
प्रोटोकॉल के अनुसार, मध्यम और गंभीर मामलों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध कराना, उचित मात्रा में और समय से कौयगुलेंट रोधी देना और व्यापक रूप से उपलब्ध एवं सस्ती कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स को कोविड-19 चिकित्सा का मुख्य आधार माना जा सकता है। हल्के मामलों के लिए, जो कुल मामलों का लगभग 80 प्रतिशत है, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) की सिफारिश की गई है। देखभाल उपचार की रणनीतियों के मानक ने सकारात्मक नतीजे दिए हैं।
कोविड-19 के लिए एक प्रभावी उपचार की खोज के परिणामस्वरूप कई दवाओं का पुन: उपयोग किया गया है जो मुख्य नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन ‘जांच चिकित्सा’ के रूप में इनका संकेत दिया गया है। इन दवाओं का रोगी को इसके बारे में बतलाकर और उनके साथ साझा निर्णय के आधार पर रोगियों के विशिष्ट उप-समूहों में उपयोग किया जा सकता है। इन दवाओं को अब भी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की स्वीकृति नहीं मिली है और इन्हें केवल कोविड-19 के लिए प्रतिबंधित इमरजेंसी उपयोग के लिए अनुमति दी गई है। आईसीएमआर और एम्स ने राज्यों के साथ-साथ उत्कृष्टता केंद्र के रूप में नामित मेडिकल कॉलेज अस्पतालों को सावधान करते हुए याद उन्हें दिलाया कि इन दवाओं का अंधाधुंध उपयोग या इनका उन स्थितियों में उपयोग किया जाना जिसके लिए वे वांछनीय नहीं हैं, फायदे से अधिक नुकसान पहुंचा सकता हैं।
राज्यों को यह भी बताया गया कि रेमेडिसविर के लिए उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि यह मध्यम से गंभीर मामलों में उपयोग किए जाने पर नैदानिक ​​सुधार के समय को कम कर सकता है। हालांकि, मृत्यु दर कम करने के संदर्भ में इससे कोई लाभ नहीं हुआ है। जिगर और गुर्दे को चोट पहुंचाने सहित शरीर पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव डालने की इसकी क्षमता के कारण इसका उपयोग अत्यधिक सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। इसी तरह, टोसिलिज़ुमाब के लिए किए गए अध्ययन में इसका मृत्यु दर में कमी लाने में कोई लाभ नहीं दिखा है। हालांकि, गंभीर हालत में पहुंच चुके रोगियों के लिए इसका उपयोग किया जाना हो तो इसके लिए उसकी सूचित सहमति की आवश्यकता है। ‘साइकोटाइन स्टॉर्म’ में दवा का प्रभाव निर्देशित होने के कारण इसके बड़े पैमाने पर उपयोग को रोका जाना है।
सभी 'जांच चिकित्सा' केवल उचित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं से युक्त अस्पतालों में ही की जानी चाहिए जहां रोगियों पर नजदीकी निगरानी रखना संभव है ताकि किसी भी संभावित जटिलताओं को दूर किया जा सके। आईसीएमआर ने दृढ़ता से सिफारिश की है कि नैदानिक ​​प्रबंधन का ध्यान ऑक्सीजन थेरेपी (उच्च प्रवाह नाक ऑक्सीजन सहित), स्टेरॉयड (जो व्यापक रूप से उपलब्ध और सस्ती है), उचित मात्रा में और समय पर कौयगुलेंट रोधी देने और रोगियों तथा उनके परिजनों को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, पहले से मौजूद बीमारी का उपचार और लक्षणों के उपशमन सहित उच्च गुणवत्ता वाले सहायक देखभाल मापदंडों पर बने रहना चाहिए। इन तमाम तथ्यों की जानकारी पीआईबी के द्वारा प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जारी की गई

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