बैंकों के ऋण प्रक्रियाओं  में जटिलताओं के कारण सूदखोरों के चंगुल में फंस रहे मासूम लोग 

सूद पर रुपये चलानेवाला पर कसना होगा शिकंजा ,आयकर विभाग नहीं लेता संज्ञान 


राजन मिश्रा
20 मार्च 2019 

पटना- सूबे  में इन दिनों चल रहे मंदी के दौर और व्यवसायिक उथल-पुथल में लोगों का खर्च अधिक और आय कम होने लगा है जिसके कारण लोग अपने खर्च को मेंटेन करने के लिए दिन-ब-दिन सूदखोरों के चंगुल में फसते  हुए नजर आ रहे  है सूत्रों की मानें तो सूद  पर पैसा चलाने वाले लोगों की इन दिनों चांदी है यह लोग   10 फ़ीसदी महीने का  का सूद  लोगों से लेकर इनको नकदी उपलब्ध करा देते हैं और आसानी से पैसा मिल जाने के कारण लोगों को अत्यधिक सूद चुकाना पड़ता है लेकिन कहीं ना कहीं लोगों की मजबूरी और बैंकों में चल रहे  प्रक्रियाओं की जटिलता ही लोगों को इन सूदखोरों के चंगुल तब पहुंच आती है बताया जाता है कि जब भी कोई व्यक्ति किसी बैंक के पास ऋण लेने के लिए पहुंचता है तो बैंकों द्वारा कई प्रकार के दस्तावेजों के साथ- साथ मोरगेज और बंधक में कई प्रकार के दस्तावेजों का डिमांड किया जाने लगता है जो कहीं ना कहीं गरीब लोग देने में असमर्थ हो जाते हैं और बैंक के लोगों द्वारा  इन लोगों को बार-बार दौड़ाया जाना बावजूद उसके इनको लोन नहीं दिया जाना लोगों को रास नहीं आता और लोग अत्यधिक सूद  देकर भी प्राइवेट लोगों से कर्ज के रूप में रुपया लेना ज्यादा पसंद करते हैं, लेकिन कहीं ना कहीं यह सूदखोर लोग लोगों का नाजायज फायदा उठाते हुए लोगों से बैंक की अपेक्षा 4 गुना अधिक सूद  ले कर इनको नकदी उपलब्ध कराते हैं लोगों को तुरंत ही नकदी उपलब्ध हो जाने के कारण इनका सूद उस समय तो अच्छा लगता है लेकिन बाद में यह सूदखोर लोग इतना अधिक सूद  ले लेते हैं की ऋण लेने वाले लोग बिकने के कगार पर आ जाते हैं, कभी-कभी तो सूदखोर लोग इतना दबाव बनाने लगते हैं कि कोई लोग आत्महत्या करने की भी सोचने लगते हैं ऐसी परिस्थिति में यदि बैंक अपने ऋण प्रक्रियाओ  को जटिलता मुक्त कर दे और अपने द्वारा दिए जा रहे हैं ऋणों के सूद दर में थोड़ा सा सूद दर  बढ़ाकर लोगों को सुगमता से ऋण उपलब्ध करा दें तो शायद लोग सूदखोरों के चंगुल में नहीं जाएंगे और देश का राजस्व भी बढ़ेगा। गौरतलब हो कि इस समय में बैंक 14 से 19 परसेंट सालाना तक का सूद लोगों से लेता है और प्राइवेट लोग  दस परसेंट महीने का सूद  लोगों से लेते हैं ऐसे में यदि बैंक अपने सूद  का परसेंटेज साल का 25 -30 फीसदी सालाना भी कर दे तो लोग पीछे नहीं हटेंगे और ऋण चुकाएंगे लेकिन बैंकों के द्वारा की जा रही कार्रवाई लोगों के लिए काफी जटिल है जिसके कारण लोग बैंक के जगह प्राइवेट लोगों से ऋण लेना ज्यादा बेहतर समझते हैं यह बातें दिगर है कि बाद में यह लोग काफी परेशान रहने लगते हैं और अंत में इसका परिणाम बहुत बुरा होता है लोगों को बचाने के लिए और देश के राजस्व को बढ़ाने के लिए इन जटिलताओं को दूर करना होगा और बैंकों को अपने नियमों और कानूनों को सुगम बनाते हुए लोगों को ऋण उपलब्ध कराना होगा, ताकि लोगों के विकास के साथ-साथ बैंकों का विकास और देश का राजस्व भी बढ़े।  ऐसे में सरकार को हस्तक्षेप करते हुए सरकारी और गैर सरकारी बैंकों के नियमों में फेरबदल करते हुए विकास का रास्ता अपनाना होगा ताकि लोग भी बचे रहें और सूदखोर और दलाल के चँगुल  दूर हो सके
गौरतलब हो की  सूदखोरों का आतंक सूबे के कई जिलों में काफी स्तर  तक बढ़ गया है कुछ जिलों में तो ये लोग काफी सक्रिय है जिनमे मुख्य रूप से बक्सर,आरा,सासाराम,भभुआ ,पटना आदि है 
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